'कबीर के काव्य में मानवीय संवेदना' आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कबीर के व्यक्तित्व की व्याख्या करते हुए कहा है कि कबीर को लोगों ने समाज-सुधारक , सर्वधर्म- समन्वयकारी , हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतिष्ठापक , कवि , दार्शनिक एवं भक्त आदि रूपों में देखा है. कबीर के काव्य अभिव्यक्त भाव संवेदना एवं विषयवस्तु हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के उक्त मान्यता के अनुसार है. कबीर का मानवीय संवेदना से ओतप्रोत होने के कारण आज इक्कीसवी सदी में भी प्रासंगिक है. आज की सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक , आध्यात्मिक स्थितियों की पडताल की जाये तो कबीर काव्य की प्रासंगिकता एवं उनमें अभिव्यक्त मानवीय संवेदना का अनुमान लगा सकते हैं. यहां कबीर काव्य की प्रासंगिकता को देखने से पहले प्रासंगिकता की संकल्पना को जानना जरुरी है. प्रासंगिकता का अर्थ है प्रसंगवश सामने आयी हुई बात. काल संदर्भ में प्रासंगिकता का निर्णय भी इसी कसौटी पर होता है. विभिन्न युगों में विभिन्न शक्तीयां स्वाधीनता को बढाने वाली रही है , इसी के अनुसार उनकी तत्कालीन प्रासंगिकता का निर्...